आध्यात्मिक स्वास्थ्य के सरल उपाय

जीवन का आनन्द लेने के लिए हमारा शारीरिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए । वर्तमान समय हम अपने चारों ओर काम क्रोध, लोभ, मोह अहंकार जैसे पांच विकारों से प्रकम्पित वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे हैं जो हम मनुष्यात्माओं द्वारा ही उत्सर्जित किए जा रहे हैं । इसका दुष्प्रभाव अनुभव करते हुए हम अनेक मानसिक व शारीरिक व्याधियों से जूझ रहे हैं क्योंकि भोजन, हवा और पानी तीनों ही दूषित हैं । इन्हें शुद्ध करने के भौतिक प्रयास पूर्णतः कारगर नहीं हो पा रहे हैं । हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य बेहतर होना आवश्यक है । इसलिए हमें आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त करने के सरल उपाय अपनाने होंगे ।

अशुद्ध विचारों का दुष्प्रभाव

हमें यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि नकारात्मक और विकारी विचारों के प्रकम्पनों का हमारे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के साथ क्या सम्बन्ध है । हम सभी जानते हैं कि भोजन, जल और वायु पर हमारा शरीर निर्भर है । यदि ये तीनों ही तत्व साफ, स्वच्छ व शुद्ध हों तो हमारा शरीर भी स्वस्थ रहता है । अन्यथा हमारे शरीर को अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं । साथ ही साथ हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य भी कमजोर हो जाता है ।

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भोजन पानी और हवा की अशुद्धियों का दुष्प्रभाव

आजकल यह स्पष्ट नजर आता है कि बाजार में सभी प्रकार की खाद्य सामग्रियां दूषित हैं । सब्जियां, फल और अनाज अनेक प्रकार के घातक रसायनों की सहायता से उगाए व पकाए जाते हैं । दूसरी ओर वाहनों और कारखानों से उत्सर्जित होने वाले धूंवे से हवा प्रदूषित हो रही है और फैक्ट्रियों से निकलने वाले विषैले रसायनों से पीने का पानी भी दूषित हा रहा है । जीवन के तीन मूलभूत आधार भोजन, पानी और हवा प्रदूषित होने के कारण शारीरिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है ।

विचारों की अशुद्धि का प्रभाव

इन भौतिक अशुद्धियों के साथ साथ एक और अशुद्धि है जो इस दुनिया की करोड़ों मनुष्यात्माओं के नकारात्मक विचारों के माध्यम से भी इन तीनों ही जीवन दायक तत्वों भोजन, पानी और हवा में घुलती जा रही है । पांच विकारों से ग्रसित विचार और वृत्तियां गैर भौतिक अशुद्धियां है जिनका भी दुष्प्रभाव भोजन सामग्री, जल और वायु पर पड़ता है । अशुद्ध विचारों से प्रभावित इन तत्वों को ग्रहण करने पर हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य रुग्ण होने लगता है ।

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नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत क्या है ?

अशुद्ध विचारों से वातावरण में फैली हुई नकारात्मक ऊर्जा हमारे अन्तर्मन में उपस्थित पांच विकारों की ही देन है जिन्हें प्रत्येक प्राणी उत्सर्जित करता है । यही प्रकम्पन हमें अनैतिक कृत्य करने के लिए दुष्प्रेरित करते हैं । हमारे अशुद्ध विचार ही हमारे जीवन में विघ्नकारी और नकारात्मक परिस्थितियों को जन्म देते हैं जिससे हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य का क्षय होता है । हमारे शरीरों में इस प्रकार के सूक्ष्म बदलाव के कारण अनेक बीमारियां आती हैं और साथ ही साथ ये हमारी आत्मा को भी शक्तिहीन बनाती है ।

इसलिए ये तीनों ही तत्व ग्रहण करने से पहले हमें इनका भौतिक व आध्यात्मिक विधि से शुद्धिकरण करना आवश्यक है । अपने पवित्र विचारों का प्रकम्पन रोज इन तीनों तत्वों को देकर इनका काफी हद तक शुद्धिकरण किया जा सकता है । आईए जानते हैं कि हम इन तीनों तत्वों का शुद्धिकरण कैसे करेंगे

भोजन के शुद्धिकरण से आध्यात्मिक स्वास्थ्य

बाजार से लाए गए फल, सब्जियां और अनाज को शुद्ध करने के लिए सर्व प्रथम राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास करके परमात्मा से समस्त गुण व शक्तियां स्वयं में समाते जाएं और फिर स्वयं को एक शुद्ध आत्मा अनुभव करते हुए अपने मस्तक के मध्य से श्वेत पवित्र किरणों को प्रवाहित होता हुआ अनुभव करें ।

यह महसूस करें कि ये श्वेत पवित्र किरणें सब्जियों, फलों और अनाजों में से समस्त अशुद्धियां मिटा रही हैं । सभी प्रकार की खाद्य सामग्री शुद्ध होती जा रही है, भोजन सामग्री के शुद्ध होने से पे सर्व शक्तियों और गुणों से भरपूर होती जा रही है ।

अपने अन्तर्मन में उत्पन्न होने वाले दिव्य और शुद्ध विचारों का प्रकम्पन समस्त भोजन सामग्री को भी दिव्यता सम्पन्न बना रहा है । यही शुद्ध और दिव्य भोजन सामग्री मुझ आत्मा को मानसिक और शारीरिक रोगों से मुक्त करेगी । इस प्रकार के सकारात्मक संकल्पों के प्रभाव से भोजन शुद्ध और सात्विक बन जाता है।

राजयोग मेडिटेशन का गहरा अभ्यास करके स्वयं में पवित्रता की शक्ति को समाहित कर शुद्ध संकल्प करते हुए अपने हाथों से समस्त भोजन सामग्री को सहलाकर उनमें शुद्धता का दिव्य संचार करें ।

भोजन को पकाते समय आत्म स्मृति रहे और परमात्मा का स्मरण चलता रहना चाहिए । मन ही मन यह संकल्प चलना चाहिए कि मैं आत्मा अपने पवित्र विचारों और पवित्र हाथों से यह भोजन बना रही हूँ और मेरी शुद्ध दृष्टि से यह भोजन भी पवित्र और शक्तिशाली बन रहा है ।

बार बार मन में यह भी दौहरा सकते हैं कि यह भोजन परमात्मा को अर्पित है । भोजन बनाते समय परमात्मा के प्रति अपना स्नेह प्रकट करने वाला कोई मधुर गीत मन ही मन गुनगुना भी सकते हैं । कुल मिलाकर भोजन बनाते समय स्वयं की चेतना शुद्धता और दिव्यता के श्रेष्ठ स्तर पर होनी चाहिए ।

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परमात्मा को भोजन अर्पित करें

भोजन ग्रहण करने से पूर्व अपनी शुद्ध भावनाओं के साथ सर्वप्रथम परमात्मा को भोग के रूप में भोजन स्वीकार कराएं । भोजन करते समय आसपास का वातावरण शान्त होना चाहिए तथा स्वयं में भी परमात्म प्रेम और पालना का सुन्दर एहसास होना चाहिए । इन अभ्यासों को अपने जीवन का अंग बनाकर हम अपना भोजन शुद्ध और पवित्र बनाकर आध्यात्मिक स्वास्थ्य पा सकते हैं ।

जल के शुद्धिकरण से आधत्मिक स्वास्थ्य

हमारे शरीर के लगभग 75 प्रतिशत भाग में जल है । यदि जल शुद्ध ना हो तो हमारे शरीर के अधिकांश अंग भी रोगी, कमजोर और निस्तेज हो जाएंगे । भोजन की तुलना में जल के माध्यम से सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही प्रकम्पन अधिक तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं । इसलिए अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए शुद्ध जल का सेवन करना अत्यन्त आवश्यक है ।

भौतिक विधियों से पीने योग्य जल का शुद्धिकरण करने के साथ साथ आध्यात्मिक विधि द्वारा भी इसे शुद्ध, पवित्र और शक्तिशाली बनाया जा सकता है । एकाग्र होकर यदि पवित्र, सकारात्मक और शक्तिशाली विचारों का प्रकम्पन पीने योग्य जल में प्रवाहित किया जाए जो वह भौतिक रूप से शुद्ध और अधिक स्वास्थ्यवर्धक बन जाता है । हमें ऐसे जल का ही सेवन करना चाहिए।

जल शुद्धि की विधि

जल को शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए हम अपने मन में यह विचार जागृत कर सकते हैं कि मैं सर्व प्रेमी, कल्याणकारी आत्मा हूं । परमात्मा से प्राप्त होने वाली आनन्द, प्रेम और पवित्रता की किरणें से भरपूर सफैद किरणें मुझमें समा रही हैं और मुझसे निकलकर सामने रखे जल में प्रवाहित होकर उसे शुद्ध और शक्तिशाली बना रही है । प्रकृति के पांच तत्वों में जल तत्व का मैं आत्मा सम्मान करती हूँ और प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने कृत्यों से इसे कभी भी अशुद्ध, दूषित और अपवित्र नहीं होने दूंगी । मैं आत्मा सदा अपने पवित्र और शक्तिशाली विचारों से जल तत्व को शुद्ध बनाए रखने का पुरूषार्थ करती रहूंगी ।

भोजन बनाने व पीने के लिए उपयोग में आने वाला जल हम जिस पात्र मे रखते हैं, उसके समक्ष प्रतिदिन एक निश्चित समय पर निश्चित अवधि के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर राजयोग के अभ्यास द्वारा स्वयं में संग्रहित सकारात्मक और शक्तिशाली संकल्पों के प्रकम्पन अपनी शुद्ध दृष्टि द्वारा देने चाहिए । हमारे विचारों से जागृत होने वाली ऊर्जा हमारी दृष्टि से निकलकर सामने रखे जल में प्रवाहित होकर उसे शक्तिशाली बना देगी । उस जल का सेवन करने से हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य समग्र रूप से सुधरने लगेगा । साथ ही साथ हमारे बोल और कर्म भी अच्छे होने लगेंगे ।

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हवा का शुद्धिकरण

जीवित रहने के लिए हमें प्राणवायु अर्थात हवा की आवश्यकता रहती है किन्तु यदि वह हवा शुद्ध न हो तो हमें बीमार कर सकती है । हवा का शुद्धिकरण अत्यन्त आवश्यक है । हम अपने चारों ओर आज के समय शुद्ध हवा का अभाव ही अनुभव करते हैं ।

भौतिक विधियों से हवा का शुद्धिकरण पूर्णतः सम्भव नहीं होता । इसलिए हमें वायुशुद्धि हेतु आध्यात्मिक विधि का सहारा लेना होगा । इसके लिए हमें शान्ति, पवित्रता, सुख, आनन्द, प्रेम आदि से भरपूर सकारात्मक विचारों के प्रकम्पन वायुतत्व को प्रदान करने होंगे । आईये जानें, कि हम यह कैसे कर सकते हैं ।

हम अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को राज्योग मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा प्रतिदिन विकसित करते हुए उसके प्रकम्पन चारों ओर के वायुमण्डल में प्रवाहित करने होंगे । वायुतत्व अत्यन्त सुक्ष्म और संवेदनशील तत्व है जो प्रत्येक संकल्प को अपने में तुरन्त समा लेता है । हम सभी जानते हैं कि वायु तत्व हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है जो हमें जीवन प्रदान करता है ।

वायु शुद्ध करने की विधि

वायुशुद्धि हेतु हमें अपने संकल्पों को बहुत सूक्ष्मता से देखना होगा । हमें अपना ही आत्मचिन्तन व आत्मदर्शन करना होगा कि मैं सर्व गुणों और शक्तियों से भरपूर एक दिव्य आत्मा हूँ, मैं आत्मा अपने शरीर के भीतर मस्तक में विराजमान हूँ और वहां से इन्हीं गुणों और शक्तियों के प्रकम्पन निकलकर चारों और फैलकर आसपास की प्राणवायु को शुद्ध कर रहे हैं । चारों ओर प्रवाहित हो रही मंद मंद हवाएं मेरे सम्पर्क में आकर शुद्ध हो रही है । यही प्राणवायु ग्रहण करने वाला हर प्राणी भी आध्यात्मिक स्वास्थ्य से भरपूर हो रहा है ।

प्रकृति के सभी तत्व मेरे जीवन रक्षक है, इसलिए मैं आत्मा सभी तत्वों का हृदय से सम्मान करती हूँ । इसीलिए अपना कर्तव्य समझते हुए पवित्र संकल्पों द्वारा इन सभी तत्वों का शुद्धिकरण करना मेरी दिनचर्या का अभिन्न अंग है । इस प्रकार के सुन्दर और सकारात्मक विचार आसपास के वायुमण्डल को शुद्ध करते जाएंगे और परिणामस्वरूप हम भीतर से अधिक प्रसन्न और स्वस्थ अनुभव करेंगे ।

आध्यात्मिक स्वास्थ्य के कुछ अन्य सरल उपाय

संतुलित और खुशहाल जीवन जीने के लिए आध्यात्मिक स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए । आध्यात्मिक स्वास्थ्य से शरीर, मन, बुद्धि और विवेक का आपस में तालमेल बेहतर बनता है । कुछ निम्नलिखित उपायों से आध्यात्मिक स्वास्थ्य सुधारा जा सकता है –

ध्यान और मेडिटेशन-

ध्यान और मेडिटेशन मानसिक तंत्र में शांति और स्थिरता आती है । स्थिर मन हमें स्वयं से जुड़ने में सहयोग करता है । हम आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं । फलस्वरूप हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य सुधरने लगता है ।

योग और प्राणायाम-

योग और प्राणायाम से हमारी शारीरिक ऊर्जा संगठित होती है, एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक चिंताएं कम होने लगती है जिससे आध्यात्मिक स्वास्थ्य सुधार की ओर अग्रसर होने लगता है । जीवन में कोई भी विघ्न मानसिक व शारीरिक रूप से व्यथित नहीं कर सकता ।

सात्विक आहार-

भोजन का शरीर के साथ साथ मन पर भी प्रभाव पड़ता है । सात्विक भोजन प्रकृति के नियमों की परिधि में होता है । इसलिए ऐसा भोजन शरीर को स्वस्थ बनाने के साथ साथ आध्यात्मिक स्वास्थ्य को भी कायम रख्ता है ।

सेवा और दान-

दूसरों की सेवा और दान करने से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मिलने वाली दुआएं और शुभकामनाएं हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करती है । दूसरों की मदद करने से हम आत्म सन्तुष्टि का सुखद अनुभव करते हैं जो हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए संजीवनी बूटी के समान है ।

सकारात्मक सोच-

व्यर्थ, दुषित और अशुद्ध विचार हमें मानसिक रोगी बनाते हैं और शारीरिक व्याधियां भी उत्पन्न करते हैं । सकारात्मक विचारों से मन प्रसन्न रहता है जिससे शरीर भी स्वस्थ्य रहता है । इसलिए शुद्ध, समर्थ और सकारात्मक विचार हमेशा आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं ।

स्वयं की देखभाल-

अपने आध्यात्मिक स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु आत्म केन्द्रित रहना आवश्यक है । इधर उधर की बातों में ध्यान देने से मन में बुरे विचारों का प्रवेश होता है जो आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । इसलिए स्वयं को बाहर की घटनाओं के प्रभाव से सावधान रहकर बचना चाहिए ।

आध्यात्मिक स्वास्थ्य के सुधार हेतु उक्त उपाय भी कारगर होते हैं जिन्हें अपनी दिनचर्या में प्राथमिकता देकर हम इनसे अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकते हैं ।

सम्पूर्ण विवेचन का सार यही है कि भोजन, जल और वायु का शुद्धिकरण हमारे पवित्र, सकारात्मक, शक्तिशाली विचारों से ही सम्भव है और इन विचारों को जागृत करने के लिए नियमित राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास करना आवश्यक है । राजयोग का नियमित अभ्यास करके हम आध्यात्मिक स्वास्थ्य से सम्पन्न होकर स्वयं को दिव्य और महान बना सकते हैं तथा आसपास का वातावरण भी सकारात्मक रूप से परिवर्तित कर सकते हैं । राजयोग का अभ्यास हमारे लिए संजीवनी बूटी के समान है ।

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