सम्पूर्ण मानव जीवन संदेह और विश्वास, दुर्बलता और सबलता, भय और निर्भयता, निश्चितता और अनिश्चितता के मध्य सघर्ष का पर्याय है । मानव को अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन की चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों पर नियन्त्रण भी करना होता है । किन्तु जीवन में आत्म अनुशासन का अभाव होने के कारण मनुष्य अक्सर आन्तरिक और बाह्य द्वंद्वयुद्ध में कभी स्वयं से और कभी परिस्थितियों से पराजीत होता रहता है ।
आत्म अनुशासन क्या है ?
आत्म अनुशासन एक महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य है जो मनुष्य को अपने जीवन के लक्ष्यों और महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए अपने मनोबल, समय, प्राकृतिक व भौतिक संसाधनों, शारीरिक शक्तियों और समस्त सामाजिक व्यवस्थाओं का संयमित रूप से उपयोग करने में समर्थ बनाता है । आत्म अनुशासन ही हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन की चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों और अर्न्तमन के विचारों में सामंजस्य स्थापित करने का साधन है ।
आत्म अनुशासन की परिभाषा क्या है ?
नैतिक मुल्यों के आधार पर आध्यात्मिक विकास व आत्मोन्नति करते हुए अपने विचार, वाणी, कर्म, जीवन शैली और आचरण पर सहज संयम और नियन्त्रण के साथ स्वयं को विश्व कल्याण के उद्देश्य हेतु सम्पूर्ण समर्पित करना ही वास्तविक आत्म अनुशासन कहलाता है, जो हमारे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सामर्थ्य बढ़ाने का अनमोल और सहज सुलभ साधन है जिसे अपनाकर व्यक्ति संयमित रूप से सदा अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रतिबद्ध रहता है । यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सम्पूर्ण सफलता का आधार है ।
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आत्म अनुशासन का जीवन में क्या महत्व है ?
आत्म अनुशासन हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और व्यावहारिक जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो लक्ष्य प्राप्ति में सफलता की दिशा निर्धारित कर उसे प्राप्त करने में सहयोग करता है । नियमित और सजगतापूर्वक किए गए कार्य से ही सफलता प्राप्त होती है । यह व्यक्ति को नियमित योग अभ्यास, ध्यान और शारीरिक व्यायाम करने के लिए प्रेरित कर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उन्नत करता है जिससे वह अपने विचारों, इच्छाओं, और कार्यों को नियंत्रित व संयमित करके स्वाभाविक रूप से सक्रिय बनता है।
आत्म अनुशासन हमारे अन्दर सात्विक विवेक जागृत कर सृजनात्मक कार्यों में समय सफल करना सिखाता है । इससे उत्पन्न संयमित सक्रियता आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि का आधार है जो जीवन को अलौकिक सुख, आनन्द ओर सन्तोष से भरपुर कर देती है । यह हमें मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ, सकारात्मक और सफल जीवन जीने में सहयोग करता है । इसलिए इसका हमारे जीवन में बहुत महत्व है ।
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आत्म अनुशासन के फायदे
संयम –
आत्म अनुशासन से व्यक्ति अपनी भावनाओं, इच्छाओं और प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण करना सीखता है । अपने विचारों और क्रियाओं के परिणामों का पूर्वानुमान लगाकर उन्हें प्रबन्धित करने की कला आत्म अनुशासन से जागृत होती है ।
सामर्थ्य –
यह व्यक्ति को अपने क्षेत्र में नैतिकता और दृढ़ता से काम करने की क्षमता विकसित करता है । फलस्वरूप व्यक्ति उसके अनुकूल निर्णय लेकर आगे कदम बढ़ाते हुए अपने कार्यों में निरन्तर संशोधन कर लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए समर्थ बनाता है।
समय और संसाधन प्रबन्धन –
अपने शुद्ध उद्देश्य की प्राप्ति हेतु केवल आत्म अनुशासन ही ऐसा साधन है जो व्यक्ति में समय और उपलब्ध भौतिक संसाधनों का उचित प्रबन्धन करने की क्षमता विकसित करता है ।
उत्साह –
यह व्यक्ति में परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर उन पर विजय प्राप्त करने का मनोबल व उत्साह प्रदान करता है, जिससे वह उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ी पर चढ़ता जाता है ।
अर्थपूर्ण जीवन –
जीवन में आने वाली परिस्थितियों का धैर्य और सहनशीलता से सामना करते हुए जीवन को अधिक उत्कृष्ट और अर्थपूर्ण बनाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है ।
आत्म अनुशासन अपनाने की विधि क्या है ?
यह जीवन पर्यन्त चलने वाली एक स्व नियन्त्रित और समर्थ जीवन जीने की अखण्ड तपस्या है । यह स्वयं के साथ सार्थक संवाद और स्वयं के संशोधन के माध्यम से संचालित क्रिया है, जिसके अनेक घटक हैं । स्वयं को अनुशासित बनाने की विधियां भिन्न भिन्न हो सकती है, किन्तु मुख्य रूप से निम्नांकित गुण और विशेषताओं को सजग रूप से जागृत करना आवश्यक होता है –
आत्म समीक्षा –
इसे अपनाने के लिए व्यक्ति को सर्व प्रथम नियमित आत्म चिन्तन, ध्यान और मनन के अभ्यास द्वारा अपने जीवन के मूल्य और अपने लक्ष्य को समझकर अपनी क्षमताओं, विशेषताओं, गुणों और अवगुणों, सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं की आत्म समीक्षा करने की आवश्यकता होती है । यह आत्म समीक्षा उसे मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से लक्ष्य प्राप्ति हेतु दिव्य और रचनात्मक शक्तियों से भरपूर करती है ।
संयम –
जिस प्रकार एक नदी अपनी सीमाओं को लांघकर रिहायशी बस्तियों में प्रवेश कर जन धन की हानि करती है, उसी प्रकार असंयमित विचार, इच्छाएं और क्रियाएं भी हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन के लिए अहितकारी है । संयम ही इसका मूल आधार है जो हमारे विचारों, इच्छाओं, और क्रियाओं को नियन्त्रित कर हानिकारक और अनिष्टकारी कृत्यों से विमुख करने में मदद करता है। आत्म अनुशासन के लिए अपने संयम की समीक्षा प्रतिदिन करते हुए अनियन्त्रित विचारों, इच्छाओं, और क्रियाओं का संशोधन करने का प्रयास करना आवश्यक है ।
सार्थक लक्ष्य –
उस व्यक्ति के लिए आत्म अनुशासन का कोई महत्व नहीं जिसका जीवन लक्ष्यहीन है । यदि जीवन में किसी सार्थक लक्ष्य को पाने की प्रबल उत्कण्ठा हो तो आत्म अनुशासन अनिवार्य है । ऐसा भी कहा जा सकता है कि यदि व्यक्ति के जीवन में आत्म अनुशासन है तो निश्चित रूप से उसने कोई लक्ष्य निर्धारित किया होगा । ऐसे व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित करने और उसे प्राप्त करने के लिए विचलित नहीं होना पड़ता ।
समय का प्रबन्धन –
सांसारिक जीवन में प्रतिदिन अनेक कार्य निस्पादित करने के लिए समय का सही नियोजन करने की आवश्यकता होती है । उचित प्रबन्धन द्वारा समय का अधिकतम सदुपयोग करना आत्म अनुशासन का महत्वपूर्ण अंग है। समय को बेहतर ढंग से उपयोग करना एक कला है जिससे व्यक्ति को उत्कृष्ट रूप से सफलता मिलती है।
स्वास्थ्य –
आत्म अनुशासन के लिए स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है। प्रतिदिन नियमित समय पर व्यायाम, योग, ध्यान और सात्विक आहार व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्थिति को सुधारकर आत्म उसे आत्मविश्वास से भरपूर करता है ।
सकारात्मक विचारधारा –
नकारात्मकता और संशय व्यक्ति का आत्मविश्वास और हिम्मत को नष्ट कर उसके कदमों को थमा देते हैं । जीवन में सकारात्मक विचारों को महत्व, प्राथमिकता और उसका समर्थन करके ही आत्म अनुशासन की धारणा सशक्त होती है ।
निरन्तर की जाने वाली गतिशील क्रिया के रूप में किया गया आत्म अनुशासन का अभ्यास व्यक्ति में विचार शुद्धि, संस्कार शुद्धि और आत्म शुद्धि की कला सीखने की क्षमता विकसित करता है जिससे वह अपने जीवन को बेहतर बना सकता है ।
आत्म अनुशासन कब-कब लाभदायक होता है ?
आत्म अनुशासन से हमारा व्यक्तित्व विकसित होता है जिससे हम सकारात्मक और समर्थ जीवन जीने के योग्य बनते हैं । इसलिए यह हमारे जीवन के हर क्षेत्र में लाभदायक है । फिर भी उदाहरण के लिए निम्नलिखित कुछ विशेष स्थितियों में आत्म अनुशासन बहुत उपयोगी होता है –
प्रतियोगिताएं या परीक्षाएं –
किसी प्रतियोगिता या परीक्षा की तैयारी करने के लिए आत्म अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है । आत्म अनुशासन द्वारा अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने, समय का प्रबन्धन करने और स्वयं को प्रतियोगिता या परीक्षा में सफल होने के लिए मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से सक्षम बनाया जा सकता है ।
कठिन परिस्थितियां –
कठिन परिस्थितियां अर्थात् संघर्ष, विपत्ति, संकट, जीवन की व्यवस्थाओं में परिवर्तन के समय अक्सर मनुष्य निराश होकर अपना मनोबल गंवा देता है । किन्तु आत्म अनुशासित व्यक्ति अपने सकारात्मक विचारों पर ध्यान केन्द्रित करके स्वयं को हर परिस्थिति में अंगद के पांव समान मानसिक रूप से अचल अडोल बनाए रख सकता है ।
नए लक्ष्यों की प्राप्ति –
जीवन में शैक्षणिक पढ़ाई, नौकरी या व्यापार में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में आत्म अनुशासन सहायक होता है जिससे व्यक्ति स्वयं को अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहने और निरंतर प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित होता रहता है ।
सफल विद्यार्थी जीवन –
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली परीक्षाओं में श्रेष्ठतर परिणाम प्राप्त करना लाना हर विद्यार्थी का उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति हेतु नियमित अध्ययन व समय का प्रबन्धन आवश्यक है जो केवल आत्म अनुशासन से ही सम्भव है ।
आत्म अनुशासन का प्रशिक्षण कहां से लेना चाहिए ?
आत्म अनुशासन के क्षेत्र में स्वयं को समृद्ध बनाने के लिए स्व प्रेरणा अनिवार्य है । तत्पश्चात् इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है । इसका प्रशिक्षण आस-पास के कुछ स्रोतों से लिया जा सकता है, जिनका उल्लेख निम्नांकित है –
योग और मेडिटेशन शिक्षक –
योग और मेडिटेशन शिक्षक आपको आत्म अनुशासन के बारे में बेहतर समझा सकते हैं और आपको योगाभ्यास और ध्यान के माध्यम से स्वयं को नियंत्रित करना सिखा सकते हैं।
धार्मिक गुरु या आध्यात्मिक मार्गदर्शक –
धार्मिक गुरु या आध्यात्मिक मार्गदर्शक आपको आत्म अनुशासन और स्वयं को समझने का उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। वे धार्मिक अध्ययन, साधना और ध्यान के माध्यम से आपको स्वयं के प्रति संवेदनशील और आत्म विकास हेतु समर्पित करने में मदद कर सकते हैं।
स्वाध्याय और आत्म अनुसन्धान –
व्यक्ति स्व प्रेरित होकर आत्म अनुशासन सम्बन्धी पुस्तकें, लेख व साहित्य पढ़कर इससे सम्बन्धित प्रशिक्षण हेतु योजना बना सकता है । अध्ययन करने से स्वयं का अनुसन्धान करना सहज हो जाता है ।
आदर्श व्यक्ति का मार्गदर्शन –
समाज में अनेक व्यक्तियों ने आत्म अनुशासन द्वारा अपने अपने जीवन को एक आदर्श के रूप में परिभाषित किया है, जिनसे सम्पर्क करके आत्म अनुशासन को अच्छे ढ़ंग से समझने व उनके अनुभवों से लाभान्वित होकर इसे अपने जीवन में लागु करना आसान होगा ।
आत्म अनुशासन के अभ्यास का उपयुक्त समय
गौर से देखें तो आत्म अनुशासन एक व्यावहारिक क्रिया है, किन्तु इसे अभ्यास में लाने हेतु ध्यान व साधना के माध्यम से स्वयं को आत्म सुझाव देने की आवश्यकता होती है । इसके लिए उपयुक्त समय के बारे में विवेचन निम्नानुसार है –
सुबह का समय –
भोर में लगभग 3 से 4 बजे के मध्य उठकर ध्यान, मेडिटेशन और आत्म समीक्षा करके पूरे दिन के लिए आत्म अनुशासन की पृष्ठभूमि तैयार की जा सकती है । इस समय किया गया ध्यान पूरी दिनचर्या को नियमबद्ध और योजनाबद्ध बनाता है । इसलिए रोज सुबह 3 से 4 बजे जागने का अभ्यास करें । कुछ ही दिनों में यह अभ्यास आपका नैसर्गिक गुण बन जाएगा ।
दिन के दौरान –
दिनचर्या में अनेकानेक कार्य करते समय स्वयं को क्षणिक विश्राम देकर अपने विचारों का सर्वेक्षण करके उनकी गुणवत्ता का आंकलन करना चाहिए । यह अभ्यास आपके दैनिक कार्य व्यवहार के दौरान भी आपको अनुशासित रहने में सहयोग करेगा । इसका नियमित अभ्यास कुछ ही दिनों में आपको सकारात्मक विचारों के आधार पर व्यावहारिक रूप से संयमित और अनुशासित बना देगा ।
संध्या के समय –
अपने तन मन को विश्राम देने के लिए संध्या का समय उपयुक्त होता है । लोगों के साथ किए गए कार्य व्यवहार में दिखने वाले गुण व दोषों का मुल्यांकन करने व उसे संशोधित करने की योजना संध्या के समय बनाई जा सकती है ।
सोने से पहले –
सुबह जागने के बाद से लेकर सोने तक की दिनचर्या की पूर्ण और गहन समीक्षा सोने से पहले करनी चाहिए । रात को सोने से पहले अपनी गलतियों को सुधारने और व्यावहारिक गुणवत्ता को संशोधित करने की प्रतिज्ञा करना अगले दिन इसके अभ्यास को और सहज बना देता है ।
आत्म अनुशासन में आने वाली कठिनाईयां क्या हैं ?
इसकी धारणा हेतु स्वयं को समझने, अपने विचारों और क्रियाओं को नियन्त्रित करने, और धैर्यपूर्वक नियमित व निरन्तर प्रयास करने की आवश्यकता होती है। किन्तु मन में संशय या असमंजस की मनोदशा के कारण आत्म अनुशासन कठिन लग सकता है । निम्नांकित कुछ कारणों से आत्म अनुशासन करना कठिन लग सकता है –
भ्रमित विचार –
मन में निरन्तर उत्पन्न होने वाले भ्रमित विचार सबसे बड़े बाधक हैं । इस बाधा को दूर करने के लिए भ्रमित विचारों को सकारात्मक दिशा प्रदान करना आवश्यक है । विचारों को रोका नहीं जा सकता किन्तु उनकी गति को कम किया जा सकता है और गुणवत्ता को बदला जा सकता है ।
धैर्य का अभाव –
अपने अस्त-व्यस्त विचार, दिनचर्या और क्रिया कलापों को ध्यान व मेडिटेशन द्वारा आत्म अनुशासन की परिधि में लाने का प्रयास करते ही मन में विद्रोही विचारों का रौद्र रूप प्रकट होकर हमारे धैर्य की परीक्षा लेने हेतु बाधाएं उत्पन्न करता है । इसलिए मन की असामान्य आतुरता, चंचलता और व्यग्रता वाले लोगो को इसका पथ कठिन अनुभव होता है ।
उत्साह का अभाव –
कोई भी परिवर्तन सहज रूप से स्वीकार्य नहीं होने के कारण उसका विरोध होना स्वाभाविक है । ठीक इसी प्रकार अपनी जीवन व्यवस्था को बदलने का प्रयास करते समय मानसिक और शारीरिक स्तर पर आने वाले विघ्नों का सामना करना पड़ता है । किन्तु अक्सर लोग उनसे घबराकर अपना उत्साह खो देते हैं । परिणाम स्वरूप उन्हें आत्म अनुशासन करना कठिन लगता है ।
समय प्रबन्धन की कमी –
आत्म अनुशासन में समय का प्रबन्धन अत्यन्त महत्वपूर्ण है । शून्य उत्पादकता वाले व्यर्थ के कार्यों में समय व्यतीत करने वालों के लिए इसका अभ्यास कठिन होता है । इसलिए बिना समय प्रबन्धन के आत्म अनुशासन असम्भव है ।
संयम का अभाव –
अक्सर लोग चाहे या अनचाहे अपना जीवन व्यर्थ और अकल्याणकारी गतिविधियों में व्यतीत करते हैं जो उनके जीवन में आत्म अनुशासन को टिकने नहीं देते । ऐसे लोगों के लिए आत्म अनुशासन अपनाना अकल्पनीय है ।
आशाएं और अनुमान –
अक्सर लोग कुछ भौतिक और सांसारिक प्राप्तियों की आशा में इसे अपनाना शुरू तो कर लेते हैं किन्तु उनकी अपूर्ण इच्छाएं ही उन्हें निराश करती है । इसके अभ्यास में सफलता हेतु निरन्तर प्रयास करने के साथ साथ अपनी इच्छाओं की उत्कण्ठा को सन्तुलित रूप से नियन्त्रित करना भी आवश्यक है ।
अभ्यास की अनियमितता –
यह जीवन पर्यन्त नियमित किया जाने वाला अभ्यास है जिसमें विश्राम का कोई स्थान नहीं है । यदि अभ्यास में अनियमितता है तो आत्म अनुशासन कभी भी जीवन का अंग नहीं बन सकता और तथा आशा अनुरूप उसके सुखद परिणाम भी नहीं मिल सकते ।
इसलिए आत्म अनुशासन को जीवन का नैसर्गिक गुण बनाने के लिए इन सभी विघ्नों और चुनौतियों का सामना करते हुए निरन्तरता व सजगता के साथ प्रयास करते रहना होगा । धैर्य, संयम और सकारात्मक मानसिकता के साथ निरन्तर अभ्यास करने से ही आत्म अनुशासन में सफलता मिल सकती है और सुख समृद्धि की दिशा में प्रगति हो सकती है ।
अन्तिम शब्द
आत्म अनुशासन व्यक्ति को सकारात्मकता से भरपूर बनाकर उसे उच्चतम लक्ष्य तक पहुंचने में सक्षम बनाता है । जीवन में आने वाली सभी प्रतिकूल परिस्थितियां आत्म अनुशासन के बल से अनुकूलता में बदल जाती हैं । आत्म अनुशासन एक संजीवनी बूटी के समान है जो आपकी सफलता और खुशी को बढ़ावा देने में मदद करता है और उत्तम और सकारात्मक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है।