नारी सम्मान पर कविताएं

नारी समाज की मुख्य धूरी है । एक नारी ही शिशु को जन्म देने के साथ साथ उसे संस्कारित करते हुए श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करती है । किन्तु नारी को सदियों से भोग की वस्तु समझकर उसका महत्व और सम्मान को आहत किया जाता रहा है । यदि हमें अपने समाज का पुनरूत्थान करना है तो हमें नारी को सम्मान देना होगा । इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने नारी सम्मान पर कविताएं लिखकर इस ओर सबका ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास किया है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि नारी सम्मान पर कविताएं पढ़ने वाला हर व्यक्ति अपना हृदय परिवर्तन करते हुए अपने मन में नारी के प्रति सम्मान जागृत करेगा ।

नर और नारी एक समान

पुरुष तनधारी आत्माओं, क्या तुम्हारी पहचान।
किसके दम पर समझते हो, खुद को तुम महान।।

मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर, राम ने महानता पाई।
किंतु अग्नि परीक्षा से तो, सीता गुजरकर आई।।

सिर्फ पुरुषों को नहीं, महान होने का अधिकार।
नारी का बलिदान भी, हमें करना होगा स्वीकार।।

बाहुबल का धनी पुरुष, तो कम नहीं कोई नारी।
उसकी तपस्या का लोहा भी, माने दुनिया सारी।।

पुरुष ने पाई विश्व में, नारी से अधिक प्रधानता।
नहीं मिली नारी को, पुरुष के समकक्ष समानता।।

प्रधानता की श्रेणी में आकर, पुरुषों ना इतराओ।
इसके बदले में समाज प्रति, कर्तव्य भी निभाओ।।

पुरुष होकर क्यों करता, पुरुषत्व का दुरुपयोग।
जीवन भर इन्द्रियों से केवल, करता रहता भोग।।

जिस नारी से जन्म लिया, मत दो उसको गाली।
दुख देकर नारी को तुम, ना कहलाओ बलशाली।।

देखो अपने कुकर्मों पर, तुम कभी नहीं पछताते।
जन्म देने वाली नारी को, बाजार में तुम बिठाते।।

भारत की अस्मिता को, तुमने किया है खण्डित।
किस सजा से किया जाए, बोलो तुमको दण्डित।।

नारी के प्रति मत करो, अपशब्दों का उच्चारण।
कहीं ना बन जाए तुम्हारे, अपयश का ये कारण।।

करते ही रहे जीवन भर, तुम नारी तन का भोग।
जाने कितने पाल लिए तुमने, अपने तन में रोग।।

सर्व सुखों से जिस नारी ने, भरा है जीवन तेरा।
इसी नारी तन पर कुदृष्टि का, बाण चला है तेरा।।

ऐसी दूषित मानसिकता, बदलनी होगी तुझको।
समाज प्रति समझनी होगी, जिम्मेदारी तुझको।।

सदा याद रखना हर नारी है, नव दुर्गा के समान।
हस्ती ना रहेगी तेरी, यदि किया इसका अपमान।।

नारी को सम्मान देकर ही, बन पाएगा तूँ महान।
यही मुख्य समझानी तुझे, दे रहे शिव भगवान।।

ॐ शांति

क्यों नारी को नीर मिला कविता सुनिए

नारी का समतुल्य सत्कार

कामातुर होकर मानव ने, खो दिया अपना होश।
बर्बाद कर दी अपनी बेटियां, नाबालिग निर्दाेष।।

काम विकार के दलदल में, धंस चुकी मानवता।
फैल गई पुरुषों के मन में, देखो कैसी दानवता।।

पुरुष को भगवान ने, औरत का रक्षक बनाया।
किंतू नारी का भक्षक आज, पुरुष नजर आया।।

चारों और फैल गई है, वासना की घोर परछाई।
इस परछाई में हर नारी, असुरक्षित नजर आई।।

अपने श्रेष्ठ समाज में, फैल गई ये कैसी बीमारी।
देवी जो कहलाती थी, आज हुई अबला बेचारी।।

काम विकार की आग में, जल रहा सारा संसार।
किसको हम ठहराएं, इस हालात का जिम्मेदार।।

दोष किसी भी घटना का, औरों पर मत डालो।
इस घिनौने दलदल से, खुद को तुम निकालो।।

बड़ा भयंकर है ये रोग, कर देगा जलाकर राख।
सामाजिक प्रतिष्ठा मिट जायेगी, बनकर खाक।।

देवकुल के वंशज हम सब, भारत के रहने वाले।
मंदिर की मूरत तुल्य, नारी की पूजा करने वाले।।

क्यों हम नारी को, लज्जा भंग का विष पिलायें।
महान भारत की गरिमा को, इतना क्यों गिरायें।।

हर नारी के प्रति अपने, दिल में सम्मान जगायें।
शिवशक्ति समान, हर नारी को सम्मान दिलायें।।

आओ करें हम ऐसी, दुनिया का सपना साकार
पुरुष समान नारी का भी, समतुल्य हो सत्कार।।

ॐ शांति

हर नारी है पद्मावती समान

अंत नहीं जिसकी प्रशंसा का, वो थी बड़ी महान।
जलना था मंजूर जिसे, ना सहन किया अपमान।।

खिलजी को उसने कर दिया, तड़पने पर मजबूर।
लेकिन नहीं किया कभी भी, झुकना उसने मंजूर।।

नहीं भूलेंगे कभी भी हम, पद्मावती का बलिदान
जौहर करके बन गई थी वो, सारे भारत की शान।।

याद रखो ओ दुनिया वालों, ये है भारत की नारी।
इसे अपमानित किया तो, ये पड़ेगी तुम पर भारी।।

जल जाओगे आग में, तुम्हारी हस्ती मिट जाएगी।
तुम्हारी नापाक हसरतें कभी, पूरी ना हो पायेगी।।

नारी की इज्जत करो, ओ नापाक हसरत वालों।
अपनी ही हस्ती का तुम, जनाजा नहीं निकालो।।

जान लो भारत की, हर नारी है पद्मावती समान।
पूजन करता है जिसका, इस देश का हर इंसान।।

भारत की हर नारी, इस देश का गौरव कहलाती।
केवल नारी ही घर घर को, जन्नत समान बनाती।।

इसीलिए तो कहते जहाँ, नारी का होता सम्मान।
केवल उसी स्थान पर, वास करते खुद भगवान।।

नारी लक्ष्मी नारी दुर्गा, हर नारी सरस्वती समान।
शीश झुकाओ उसके आगे, कहते शिव भगवान।।

ॐ शांति

नारी का असली सौन्दर्य कविता पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ।

नारी का सम्मान

हे नारी तेरी महिमा को, मैं किन शब्दों में गाऊं।
तेरी तपस्या की महिमा, शब्दों में कर ना पाऊँ।।

अपनी खुशियां भुलाकर, तूँ सुख सबको देती।
पौंछकर आंखों से आंसू, दुख सबके हर लेती।।

शिव शक्ति का टाइटल, तुमने यूँ ही नहीं पाया।
सहनशक्ति की मिसाल, कोई और दे ना पाया।।

तेरी पूजा करते जन जन, मन्दिर तेरा बनाकर।
सिद्ध होते कार्य सभी के, तुझसे शक्ति पाकर।।

तेरे गौरव की गाथाएं कोई, एक दो नहीं हजार।
एक तेरे बलिदान पर ही, टिका हुआ ये संसार।।

प्यार नहीं देती केवल, जीना भी हमें सिखाती।
विघ्नों के आगे तूँ, ढ़ाल बनकर खड़ी हो जाती।।

उलझी बातें सुलझाकर, जीवन सरल बनाती।
अपने शुद्ध व्यवहार से, निर्मल प्यार बरसाती।।

नारी घर की रौनक है, नारी समाज का श्रृंगार
निस्वार्थ भावना से नारी, लुटाती सब पर प्यार।।

नारी में देखो दैवी रूप, कर लो इसका सम्मान।
पाप नहीं चढ़ाओ तुम, करके इसका अपमान।।

मात्र नारी ही समाज को, संस्कारवान बनाएगी।
नारी की त्याग तपस्या, स्वर्ग धरती पर लाएगी।।

आओ मन में नारी के प्रति, पूरा सम्मान जगाएं।
फिर से भारत भूमि को, हम स्वर्ग समान बनाएं।।

ॐ शांति

नारी की असली सुन्दरता

जिस्म और शक्ल से, हमें खूबसूरत नजर आती।
लेकिन सिर्फ इसीलिए, वो औरत नहीं कहलाती।।

प्यार करना भी आता, तो निभाना उसको आता।
उसका सुन्दर स्वभाव ही, बेहतर उसको बनाता।।

ठुकरा दो उसे प्यार में, तो न फेंकेगी वो तेजाब।
कभी न लगाती वो, अपनी पीड़ाओं का हिसाब।।

मरने पर मजबूर कभी, वो जरूर कर दी जाती।
लेकिन उसके कारण, मर्दों की जान नहीं जाती।।

कम दहेज के कारण, उसको मरना पड़ जाता।
किंतु उसके कारण, कोई मर्द फांसी न लगाता।।

बेटी जन्मकर वही सुनती, अपनी सास के ताने।
क्या गुजरती उसके दिल पर, कोई भी न जाने।।

मर्दों पर अभद्र टिप्पणी, करना उसको न आता।
इनसे डरकर कोई भी, रास्ता बदलकर न जाता।।

पति के आने में देरी, इनको चिन्तित कर जाती।
संदेह की कोई भी बात, इनकी बुद्धि में न आती।।

छोटी छोटी बातों पर ये, कभी हाथ नहीं उठाती।
हर बात वो प्यार से, जीवन साथी को समझाती।।

हजारों तकलीफें सहकर भी, रिश्ते निभा जाती।
जीवन से हारकर भी, दिल सबका जीत जाती।।

हर रिश्ते में जीकर वो, चाहती उसको निभाना।
खूब प्यार देकर चाहती, जरा सा सम्मान पाना।।

हर परिस्थिति में अपने, हमसफर की हमकदम।
खुद से अधिक औरों का, ख्याल करती हरदम।।

नारी का असली सौन्दर्य, तुम देख तभी पाओगे।
अपने मन की दृष्टि, जब साफ स्वच्छ बनाओगे।।

ॐ शांति

नारी पर अत्याचार, अब ना होगा स्वीकार

जीवन मिलने से पहले, हो जाते तेरे शत्रु तैयार।
तेरी किलकारी सुनकर, मचने लगता हाहाकार।।

जीवन पाना भाग्य तेरा, वर्ना गर्भ में मर जाती।
नोच नोचकर तेरा भ्रूण, कोई नारी ही मिटाती।।

जन्म लेकर भी नारी, सम्मान कभी ना पाती है।
मर्यादा की जंजीरों में, नारी ही जकड़ी जाती है।।

हर गली में कीचक बैठा है, देर भी नहीं लगाता।
मासूमों को ये अपनी, हवस का शिकार बनाता।।

वासना की आंधी का, अगर नारी होती शिकार।
सारा जीवन उस पर होते, अनगिनत अत्याचार।।

तिल तिल मरने वाला, जीवन तुझे ना जीना है।
अपमानों का घूंट तुझे, बिल्कुल भी ना पीना है।।

अब ना रही तूँ अबला, सीख जमाने से लड़ना।
अधिकारों के लिए तुझे, जिद पर होगा अड़ना।।

देवियों के नौ रूप हैं, हर एक को धारण करना।
सर्व देवियों की शक्तियां, तूँ अपने अन्दर भरना।।

दया करूणा और ममता, नारी के यही संस्कार।
किन्तु इनके बदले मत सहना, कोई अत्याचार।।

दुनिया को दिखाना अपने, मनोबल की तस्वीर।
अपने कर्मों से बना ले, खुद अपनी ही तक़दीर।।

बेड़ियों से मुक्त होकर जगा, अपना स्वाभिमान।
अपने संग संग हर नारी का, जीवन बना महान।।

ॐ शांति

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