जीवन संचालन हेतु हम सभी को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है । सूर्य नमस्कार के आसन करने से का अभ्यास दोनों आवश्यकताओं को सहज ही पूरा करता है । इसीलिए विद्यालयों में इसका नियमित अभ्यास कराया जाता है । केवल बच्चों और युवाओं के लिए ही नहीं बल्कि सूर्य नमस्कार के आसन करके इनके लाभ हर आयुवर्ग के लोग उठा सकते हैं ।

सूर्य नमस्कार का महत्व क्या है ?
व्यायाम की अनेक विधियों को सम्पादित करने से पूर्व शुरूआती व्यायाम के रूप में यह सर्वाधिक उपयोगी है । इस अभ्यास का मुख्य प्रयोजन यही है कि लम्बे योगाभ्यास करने से पूर्व सूर्य नमस्कार के अभ्यास के द्वारा शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों और शारीरिक प्रणलियों को ऊर्जावान बनाया जाता है । सूर्य नमस्कार का अभ्यास हमारे शरीर, मन और आत्मा के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हुए हमें हमारी आन्तरिक शक्तियों से जोड़कर शरीर को सम्पूर्ण कसरत प्रदान करता है । साथ ही शरीर और मन को सन्तुलित रखने में भी मददगार है ।
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सूर्य नमस्कार के आसन करने का तरीका
सूर्य नमस्कार के आसन हमारे शरीर, मन और आत्मा के लिए अत्यन्त लाभकारी है । लेकिन हमें सूर्य नमस्कार के आसन करने की सही विधि का ज्ञान होना आवश्यक है । यदि इस अभ्यास को हम सही विधि और नियम से करते हैं तो इसके अभूतपूर्व लाभ हमें प्राप्त हो सकते हैं । प्रस्तुत आलेख हमें सूर्य नमस्कार आसन करने के तरीकों और बरती जाने वाली सावधानियों से अवगत कराता है । सूर्य नमस्कार के आसन करने की विधि जानने के लिए इसकी मुद्राओं का क्रम हमें मालूम होना आवश्यक है ।
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सूर्य नमस्कार में कितने आसन होते हैं ?
सूर्य नमस्कार के आसन में कुल 12 आसनों का निर्धारित क्रम होता है । यदि सूर्य नमस्कार की विधि अपनाते हुए इन आसनों को किया जाए तो इनसे सर्वाधिक लाभ ले सकते हैं । आईए जानते है कि सूर्य नमस्कार में कौन कौनसे आसन हैं –
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प्रार्थना आसन – सूर्य नमस्कार के आसन का प्रारम्भ करने के लिए सीधे खड़े होकर उगते हुए सूर्य को देखते हुए उसी प्रकार नमस्कार किया जाता है जैसे हम देवी या देवता के सम्मुख प्रार्थना करते हैं । इसके बाद ही सूर्य नमस्कार का अभ्यास शुरू किया जाता है ।
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उर्ध्व हस्तासन – इस मुद्रा में ताड़ासन में खड़े होना और हथेलियों को एक दूसरे के सामने रखते हुए हाथों को सिर के ऊपर उठाना शामिल है। यह साँस लेते समय किया जाता है। उंगलियां छत की ओर होनी चाहिए और हाथ सीधे होने चाहिए। टकटकी ऊपर की ओर निर्देशित होनी चाहिए। यह मुद्रा बाहों और कंधों को मजबूत करती है, शारीरिक सन्तुलन में सुधार करती है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में भी मदद करती है। इस आसन से छाती व फेफड़ों में अधिक प्राणवायु ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है
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हस्तपादासन – इस मुद्रा में साँस छोड़ते हुए कूल्हों पर आगे झुकते हुए अपनी पिंडलियों या फर्श तक पहुँचते हैं। सिर को आराम देते हुए जमीन की ओर दृष्टि होनी चाहिए । इससे पेट पर दबाव पड़ता है । गैस और अपच समाप्त होती है । रक्त संचार मस्तिष्क की ओर बढ़ता है जिससे चेहरे की चमक बढ़ती है और मानसिक सन्तुलन भी सुधरता है । मन को शांत करने और तनाव घटाने में भी लाभकारी है । यह पाचन में भी सुधार करता है और मासिक धर्म की परेशानी को दूर करने में मदद करता है।
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अश्व संचालनासन – हस्तपादासन की मुद्रा से आगे इस मुद्रा में अभ्यासकर्ता को अपना बायां पैर पीछे ले जाना चाहिए और दायां घुटना मोड़ते हुए छाती के दाहिने भाग से सटाकर रखना चाहिए । दोनों हाथों के पंजे जमीन पर फैलाकर रखने चाहिए । फिर ऊपर की ओर देखते हुए गर्दन को पीछे की ओर ले जाने का प्रयास करना चाहिए । यह मुद्रा सूर्य नमस्कार के आसन में चौथी मुद्रा है । यह अभ्यास पैरों की मांस पेशियों में खिंचाव उत्पन्न करता है, उन्हें मजबूत और अधिक भार सहन करने की क्षमता से भरपूर करता है ।
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दण्डासन – यह सूर्य नमस्कार का पांचवां आसन है जिसमें दोनों पैर पीछे की ओर बराबर करते हुए शरीर को सीधा रखते हुए हथेलियों के सहारे सम्पूर्ण शरीर को सम्भाला जाता है । यह मुद्रा कंधों को मजबूत करती है और हाथों का सन्तुलन बढ़ाती है ।
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अष्टांग नमस्कार – इस अभ्यास में बाजुओं को सीधा करके छाती और सिर को छत की ओर ऊपर उठाते हुए यह मुद्रा की जाती है। यह अभ्यास भुजाओं, कन्धों और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है ।
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भुजंगासन – सूर्य नमस्कार के आसन में यह सातवां आसन है । इस अभ्यास में नाभी तक का हिस्सा उपर की ओर उठाया जाता है । शेष नीचे का हिस्सा जमीन से सटा रहता है । दृष्टि आसमान की ओर रहती है । यह मुद्रा पूरे शरीर, विशेष रूप से पीठ, पैरों और बाहों को फैलाने का एक शानदार तरीका है। यह यह मुद्रा नये अभ्यासकर्ताओं के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकती है । इसे अपनी सुविधा अनुसार बनाया जा सकता है ।
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पर्वतासन – सूर्य नमस्कार के आसन अत्यन्त सरल है । इस अभ्यास में हथेली और पैर के पंजों के सहारे पूरा शरीर ऊपर उठाया जाता है । कुल्हे ऊपर की ओर रहते हैं । शारीरिक मुद्रा एक पर्वत के समान बन जाती है ।
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अश्व संचालनासन – सूर्य नमस्कार के आसन में आगे बढ़ते हुए पर्वतासन के बाद पुनः अश्व संचालनासन का अभ्यास किया जाता है । इस अभ्यास में दायां पैर आगे की ओर हाथ के पंजों के बराबर रखा जाता है और सर ऊपर की ओर किया जाता है । बायां पैर पीछे ही रहता है और पूरे शरीर पर खिंचाव उत्पन्न होता है ।
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हस्तपाद आसन – सूर्य नमस्कार के आसन गौर से देखें तो इसमें हम घड़ी की सुईयां घूमती हुई देख सकते है । इस आसन में अश्व संचालनासन के दौरान जो पैर पीछे की ओर था उसे आगे वाले पैर के बराबर लाया जाता है और दोनों पैरों को सीधा रखते हुए गर्दन पूर्णतः नीचे झुकाई जाती है तथा दोनों हाथ जमीन पर रखने का प्रयास किया जाता है ।
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उर्ध्व हस्तासन – इसके बाद पुनः कमर को उठाते हुए सीधे खड़े होकर हाथों को आसमान की ओर ले जाया जाता है । यह आसन ताड़ासन के समान ही होता है । इस आसन में जितना हो सके पूरा शरीर ऊपर की ओर खींचने का प्रयास करना चाहिए ।
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प्रणाम आसन – यह सूर्य नमस्कार की प्रथम और अन्तिम मुद्रा है जिसमें पुनः सूर्य के समक्ष नमस्कार करते हुए सीधे खड़ा होना चाहिए ।
सूर्य नमस्कार के आसन के निर्धारित मंत्र
सूर्य नमस्कार के आसन की प्रत्येक मुद्रा के साथ उस आसन से सम्बंधित मंत्र का उच्चारण भी किया जाता है, आसन के साथ साथ यदि मुख से इन मंत्रों का स्पष्ट उच्चारण किया जाये तो सूर्य नमस्कार के अभ्यास से अत्यधिक लाभ उठाए जा सकते हैं –
- प्रणामासन – ॐ मित्राय नमः ।
- हस्तोत्तानासन – ॐ रवये नमः ।
- पादहस्तासन – ॐ सूर्याय नमः ।
- अश्व संचालनासन – ॐ भानवे नमः ।
- पर्वतासन – ॐ खगाय नमः ।
- साष्टांगासन – ॐ पूष्णे नमः ।
- भुजंगासन – ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
- पर्वतासन – ॐ मरीचये नमः ।
- अश्व संचालनासन – ॐ आदित्याय नमः ।
- पादहस्तासन – ॐ सवित्रे नमः ।
- हस्तोत्तानासन – ॐ अर्काय नमः ।
- प्रणामासन – ॐ भास्काराय नमः ।
सूर्य नमस्कार के आसन के दौरान सावधानियां
नुकसान उठाए बिना इस सूर्य नमस्कार के आसन करके अधिकतम लाभ लेना हो तो निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए –
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क्षमता से अधिक अभ्यास न करें – सूर्य नमस्कार करते समय शारीरिक ऊर्जा का एक निश्चित अनुपात में व्यय होता है । यदि शारीरिक क्षमता से अधिक ऊर्जा खर्च होने पर दर्द या बेचौनी होती है तो यह अभ्यास जबरदस्ती करने का प्रयास न करें ।
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वार्मअप व्यायाम अवश्य करें – सूर्य नमस्कार करते समय शरीर की अनेक मांस पेशियों में खिंचाव आता है । इसलिए अनावश्यक चोट से बचने के लिए इसका अभ्यास शुरू करने से पहले कुछ मिनट हल्के फुल्के व्यायाम व स्ट्रेचिंग करना चाहिए ।
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अभ्यास को सीमित रखें – यदि आपकी कोई शारीरिक सीमाएँ या चोटें हैं, तो अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अभ्यास को सीमित कर लेना चाहिए । उदाहरण के लिए, यदि आपके घुटने में चोट लगी है, तो आप घुटने को सीधा रखने के बजाय सुविधानुसार मोड़ सकते हैं ।
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अपनी सांस न रोकें – इस अभ्यास के दौरान सांस लेते रहना आवश्यक है । इसलिए सूर्य नमस्कार के अभ्यास क्रम में आगे बढ़ते हुए सांस लेना और छोड़ना नियमित रूप से जारी रखें ।
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गर्मी या उमस में अभ्यास न करें – गर्मी या उमस में सूर्य नमस्कार करने से हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन की सम्भावना रहती है, इसलिए ऐसे समय में अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
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चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें – यदि आप किसी विशेष व्याधि से ग्रसित हैं तो अभ्यास शुरू करने से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए ।
सूर्य नमस्कार के आसन कब नहीं करने चाहिए ?
कुछ परिस्थितियों में सूर्य नमस्कार के आसन करना उचित नहीं हो सकता है। इनमें से कुछ समय में शामिल हैं –
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भोजन के तुरन्त बाद – भोजन करने के बाद उसे पचाने में शारीरिक ऊर्जा खर्च होती है । यदि भोजन के तुरन्त बाद सूर्य नमस्कार का अभ्यास किया गया तो हानिकारक हो सकता है । इसलिए सूर्य नमस्कार करने के लिए भोजन के बाद कम से कम 2-3 घंटे इंतजार करना चाहिए ।
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गर्भावस्था के दौरान – गर्भावस्था के दौरान सूर्य नमस्कार करना सुरक्षित नहीं होता । इसलिए गर्भवती महिलाओं को सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से पहलेे डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए ।
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मासिक धर्म के दौरान – मासिक धर्म के दौरान सूर्य नमस्कार का अभ्यास महिलाओं को नहीं करना चाहिए क्योंकि उस समय दूसरे शारीरिक कष्ट उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है ।
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तीव्र बीमारी के दौरान – तेज बुखार या जुखाम के समय सूर्य नमस्कार का अभ्यास टाल देना चाहिए । पहले बीमारी ठीक होने की प्रतीक्षा करें, जब ठीक हो जाएं तब इसका अभ्यास करें ।
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असन्तुलित तापमान के दौरान – अत्यधिक गर्म या ठंडे तापमान में सूर्य नमस्कार का अभ्यास करना असुविधाजनक और कष्टदायक हो सकता है ।
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उच्च रक्तचाप व हृदय रोगी – सूर्य नमस्कार के दौरान अक्सर हृदय गति बढ़ जाती है । इसलिए हृदय रोगी को इसका अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए ।
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पीठ या गर्दन के दर्द से ग्रसित – ऐसे लोगों को योग प्रशिक्षक व चिकित्सक की देखरेख में ही यह अभ्यास करना चाहिए । अन्यथा यह अभ्यास आपके दर्द को बढ़ा सकता है ।
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ऑपरेशन से ठीक हुए मरीज – यदि निकटभूत में कोई ऑपरेशन से ठीक हुआ है तो उसे चिकित्सक की सलाह के बिना सूर्य नमस्कार का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
अन्तिम शब्द
सूर्य नमस्कार योग मुद्राओं का एक क्रम है जो सूर्य को सम्मान देते हुए एक विशिष्ट क्रम में किया जाता है। इसे हठ योग परंपरा में एक पारंपरिक अभ्यास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य नमस्कार का अभ्यास प्राचीन भारत में योगियों की पीढ़ियों से चला आ रहा है, और यह भी माना जाता है कि इस अभ्यास को सबसे पहले प्राचीन हिंदू संतों द्वारा विकसित किया गया था जो वैदिक युग में रहते थे। ध्यान व साधना हेतु शरीर और मन को तैयार करने के लिए सूर्य नमस्कार की विधि विकसित की गई थी जिसे आज भी कई योग कक्षाओं में इसे विद्यार्थियों को सिखाया जाता है ।
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